चंद्रयान 2 पर निबंध (Essay on Chandrayaan 2 in Hindi)


Chandrayaan-2 की लॉन्चिंग से पूर्व ही इसके बारे में पूरे देश भर में चर्चाएं चलने लगी और इसके बारे में जानने को लेकर उत्सुकता बढ़ने लगी अगर आप भी जानना चाहते हैं चंद्रयान के बारे में तो इस लेख में आपको चंद्रयान पर निबंध दिए गए हैं चंद्रयान 2 पर निबंध (Essay on Chandrayaan 2 in Hindi)!

बता दें चंद्रयान-2 एक ऐसा मिशन था जिसे शुरू करने के पीछे चांद एवम् वहां पर जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करना था। पहली बार इसरो द्वारा चंद्रमा के ऐसे हिस्से पर मानव रहित रोवर भेजने की योजना की गई थी जो कार्य अब तक कोई भी देश नहीं कर सका।

दुर्भाग्यवश chandrayaan 2 मिशन पूरी तरह कामयाब नहीं हुआ। लेकिन देश की जनता भली-भांति जानती है हमें इसरो पर नाज है आइए जानते हैं चंद्रयान 2 पर निबंध (Essay on Chandrayaan 2 in Hindi)!

चंद्रयान 2 पर निबंध (Essay on Chandrayaan 2 in Hindi)

चंद्रयान 2 पर निबंध (Essay on Chandrayaan 2 in Hindi)

चंद्रयान 2 पर निबंध 1 (Essay on Chandrayaan 2 in Hindi)

प्रस्तावना

चंद्रयान मिशन, चंद्रमा तक पहुंचने के लिए भारत के Indian space research organisation (ISRO) के द्वारा किया गया एक प्रयास है। जिसे हिंदी में भारतीय अनुसंधान अंतरिक्ष संगठन के नाम से जाना जाता हैं। भारतीय अनुसंधान अंतरिक्ष संगठन तकनीकी रूप से उन्नत दुनिया की सबसे अच्छी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है।

वैसे तो इस एजेंसी का बजट नासा को मिलने वाले बजट का कुछ अंश है, लेकिन इस अंतरिक्ष एजेंसी ने साबित कर दिया है कि नवीन प्रौद्योगिकी व रचनात्मक तरीके से आप बहुत कम लागत में भी समान उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकते हैं।

चंद्रयान मिशन भी इसरो के काबिलियत का ही एक उदाहरण हैं। अक्टूबर 2008 में चंद्रयान -1 को लॉन्च किया गया था, यह मिशन चंद्रमा पर पहुंचने वाला भारत का पहला मिशन है। चंद्रयान-1 भारत के पहले चंद्र कार्यक्रम की शुरुआत हैं।

चंद्रयान 1

22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान 1 सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था। इस मिशन में हमारे देश में विकसित ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV-XL) रॉकेट का उपयोग किया गया था।

अंतरिक्ष यान ने 8 नवंबर 2008 को सफलतापूर्वक चंद्र की कक्ष में प्रवेश किया और 19 मई से अपना परीक्षण चंद्रमा पर जारी किया। उसी दिन मून इम्पैक्ट प्रोब, शेकलटन क्रेटर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। मून इम्पैक्ट प्रोब इस तरह से दुर्घटनाग्रस्त हो गई कि बर्फ के निशान को प्राप्त करने के लिए चंद्र के उपसतह की मिट्टी का विश्लेषण किया जा सकता है।

चंद्रमा की सतह से सिर्फ 100 किलोमीटर ऊपर मंडराते हुए, चंद्रयान 1 ने चंद्रमा की स्थलाकृति के कई सारे उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले फोटो लिए। चंद्रायन ने मिनरलोजिकल मैपिंग का भी प्रदर्शन किया और रेडियोधर्मी तत्वों के लिए सतह की पूरी छान बिन की।

इस मिशन की प्रमुख उपलब्धियों में से एक, चंद्रमा की मिट्टी में बड़ी संख्या में मौजूद पानी के अणुओं की खोज थी। इस मिशन का वजन 1,380 किलो थी। इस मून मिशन की लागत केवल $ 56 मिलियन थी।

चंद्रयान 1 सफल हुआ या असफल हुआ?

वैज्ञानिकों का ये मानना हैं कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास जमे हुए पानी का उपयोग विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों जैसे कि रॉकेट ईंधन, पीने का उद्देश्य, ऑक्सीजन उत्पादन और पौधों को उगाने के लिए को पूरा करने के लिए किया जा सकता है।

लेकिन अगस्त 2009 में 312 दिनों के भीतर, चंद्रयान 1 ने ग्राउंड स्टेशन के साथ पूरी तरह संपर्क खो दिया। जब यह यान चंद्रमा की सतह से 200 किमी ऊपर मंडरा रहा था।सम्पर्क खोने के थोड़ी देर बाद, ISRO ने आधिकारिक रूप से घोषित किया कि यह मून मिशन समाप्त हो गया था।

हालांकि जांच के अनुसार इस मिशन की दो साल तक चलने की उम्मीद थी, लेकिन कई तकनीकी मुद्दों के कारण अंतरिक्ष यान का जीवनकाल केवल 312 दिनों ही था। वैसे तो ये मिशन पूरा न हो सका लेकिन इस मिशन ने अपने उद्देश्यों में से 95% उद्देश्य पहले ही प्राप्त कर लिए थे। यह मिशन न केवल इसरो के लिए बल्कि दुनिया के लिए भी एक बहुत बड़ा कदम था।

चंद्रयान 1 की सफलता ने चंद्रयान 2 के मार्ग को सफलता की ओर अग्रसर किया।

चंद्रयान 2

चंद्रयान 2 को 22 जुलाई को उसी लॉन्च पैड से लॉन्च किया गया जिसमें से चंद्रयान 1 को लॉन्च किया गया था। इस अंतरिक्ष यान ने उन्नत जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III (जीएसएलवी एमके III) का उपयोग किया।

इस अंतरिक्ष यान के 7 सितंबर, 2019 को चंद्रमा पर उतरने की उम्मीद थी। नासा का मानना हैं कि चंद्रमा के ध्रुवीय क्रेटर में सौर मंडल का सबसे कम तापमान होता है। यह मिशन दुनिया की पहली जांच होगी जो चंद्र के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगी। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य ध्रुवीय क्षेत्र के पास चंद्र जल की खोज करना था।

साथ ही साथ इसरो ने प्रज्ञान नाम के अपने चंद्र रोवर की क्षमताओं का परीक्षण करने की भी योजना बनाई है। जो  मिट्टी का लगातार रासायनिक विश्लेषण करेगा और लैंडर (विक्रम नाम) को वापस भेजेगा, जो ग्राउंड स्टेशन को इन सभी चीजों से अपडेट करेगा। यह उम्मीद थी कि रोवर 14 दिनों के लिए काम करेगा क्योंकि प्रज्ञान खुद को बनाए रखने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करता है।

इसरो ने इस बार वजन प्रतिबंध के कारण किसी भी विदेशी पेलोड को ले जाने से मना कर दिया। लेकिन जून 2019 में, यह नासा से एक छोटे से लेजर रिट्रोफ्लेक्टर को ले जाने के लिए मान गए। जिसमें ऑर्बिटर आठ लैंडर तीन और रोवर सिर्फ दो पेलोड ले जाएगा।

वैसे तो ये यान 100 किमी की दूरी पर चंद्रमा पर मंडराएगी और निष्क्रिय प्रयोगों का प्रदर्शन करेगी जैसा कि चंद्रयान 1 में किया गया था।

चंद्रयान 2 ने सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रवेश किया है। यह कहा जा सकता है कि अंतरिक्ष मिशन की सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा ऑटो सॉफ्ट-लैंडिंग होगा। चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने के बाद भारत चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बाद चंद्रमा क्लब में शामिल होने वाला चौथा देश बन गया।

इस चंद्रयान 2 मिशन की कुल लागत लगभग $ 141 मिलियन है। यह कीमत मार्वल एवेंजर श्रृंखला की हर किस्त से भी कम है। चंद्रयान 1 की तुलना में चंद्रयान 2 में ज्यादा पैसे इन्वेस्ट किए गए थे। चंद्रयान 2 स्व-निर्मित घटकों और डिजाइन वाहनों का उपयोग किया गया था।

यह मिशन कई कारणों से महत्वपूर्ण है, जिसमें यह तथ्य भी शामिल है कि भारतीय इतिहास में पहली बार एक अंतरिक्ष मिशन में दो महिलाओं ने भाग लिया गया। चंद्रयान -2 का नेतृत्व, परियोजना निदेशक और मिशन निदेशक मुथैया वनिता और रितु करिदल द्वारा किया गया।

चंद्रयान 2 की सफलता

चंद्रयान मिशन 2 ने चंद्रमा की कक्ष में ऑर्बिटर की नियुक्ति के साथ 95% सफलता प्राप्त की है। ये चंद्रयान एक वर्ष तक चंद्रमा की तस्वीर लेंगे और जरूरी डेटा को पृथ्वी पर भेजेंगे।

7 सितंबर 2019 को लैंडर, विक्रम ने चंद्रमा पर एक नरम लैंडिंग करने की कोशिश की लेकिन जब लैंडर सतह से 2 किलोमीटर दूर था तब इसरो ने विक्रम के साथ हार का सामना किया। लैंडिंग न होने पर इसरो ने कम्यूनिकेशन वापस प्राप्त करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन यह प्रयास बिल्कुल भी फलदायी नहीं था। जिसके कारण विक्रम और प्रज्ञान द्वारा एकत्र किए जाने वाले डेटा को एकत्र नहीं किया जा सकता है।

चंद्रयान पर निबंध 2 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी “इसरो” के चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के तहत चंद्रमा की तरफ प्रस्थान करने वाला भारत का पहला यान चंद्रयान था। जबकि इसी श्रेणी के दूसरा यान को chandrayaan-2 से संबोधित किया गया।

चंद्र्यान 1

चंद्रयान को पहली बार वर्ष 2008 में 22 अक्टूबर के दिन श्रीहरिकोटा से लांच किया गया। यह यान भारतीय मौसम संबंधी उपग्रह पर आधारित था। जिसकी चंद्रमा तक पहुंचने की अवधिल लगभग 5 दिन रही और इसे चंद्रमा की कक्षा में स्थापित होने में 15 दिन लग गए।

चंद्रयान को छोड़ने का मुख्य मकसद चंद्रमा की सतह के विस्तृत Map, पानी के अंश और  Helium की खोज करना था। और इस यान ने चंद्रमा की ऊपरी सतह पर लगभग 100 किलोमीटर से चंद्रमा की स्थलाकृति (topography) से High रेजोल्यूशन के फोटोस क्लिक किए।

यह लगभग 1 साल तक 2009 के अक्टूबर माह तक सक्रिय रहा। इस यान में लगभग डॉलर 6 मिलियन की लागत आई।

इसका कार्यकाल लगभग 2 वर्ष का था। परंतु दुर्भाग्यवश नियंत्रण कक्ष से संपर्क स्थापित न होने के कारण चंद्रयान को पहले ही रोकना पड़ा। लेकिन इस उपलब्धि के कारण हमारा देश उन देशों की सूची में शामिल हो गया जिन्होंने चंद्रमा में यान को भेजा था।

चंद्रयान 1 की उपलब्धि

इस यान की प्रमुख उपलब्धि या यूं कहें कि इस मिशन की उपलब्धि का कारण चंद्रयान द्वारा चंद्रमा की मिट्टी में उपलब्ध बड़ी संख्या में पानी के अणुओं की खोज करना था।

इसी यान की वजह से हमें चंद्रमा की सतह के विषय पर कई महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल हुई।

यही कारण था जिससे इसरो ने यह दावा किया कि चांद पर पानी की खोज का श्रेय भारत को जाता है। इसरो ने कहा चंद्रयान-1 ने मून इंपैक्ट प्रोब के जरिए यह खोज की, इसलिए माना जा रहा है यह सदी की सबसे बड़ी खोज में से एक थी।

चंद्रयान 2

Chandrayaan-2 को देश के द्वितीय चंद्र अन्वेषण अभियान से संबोधित किया जिसे इसरो द्वारा निर्मित किया गया था। यह यान पूरी तरह स्वदेशी था इसमें इस्तेमाल होने वाली सभी चीजें भारत में बनाई गई थी। इस यान को उसी स्थान से लांच किया गया जहां से चंद्रयान-1 ने उड़ान भरी थी।

Chandrayaan-1 से सीख लेते हुए इसरो ने इस बार यान के साथ किसी भी विदेशी पेलोड को ले जाने से साफ इनकार कर दिया। हालांकि बाद में नासा के एक छोटे से लेजर रिट्रोफ्लेक्टर को ले जाने पर सहमति बनी जिसका वजन अधिक नहीं था।

चंद्रयान-1 की तुलना में chandrayaan-2 के पीछे बड़ा दांव खेला गया है इस बार इस यान के साथ चंद्र रोवर, ऑर्बिटर और लैंडर भी साथ में थे। इस मिशन से जुड़ी एक खास बात और यह है कि इसमें अन्य दूसरे देशों की तुलना में काफी कम खर्चा हुआ है। जिस वजह से हर बार की तरह कम खर्चों में मिशन पर काम कर भारत ने अन्य देशों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत का कार्य किया है।

चंद्रयान 2 से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

जमीन से उड़ान भरने के बाद chandrayaan-2 उम्मीद के मुताबिक चांद के ऑर्बिट में प्रवेश कर चुका था और रोवर द्वारा चंद्रमा की परिक्रमा का कार्य भी किया जा रहा था। परंतु लैंडर जिसका नाम विक्रम था यह सतह पर पहुंचता उससे पूर्व ही रोवर क्रैश हो गया परंतु अभी भी रोवर चंद्रमा की परिक्रमा कर चांद से जुड़ी कई प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां इसरो को प्रदान कर रहा है

बता दें चंद्रयान-1 के उड़ान भरने के बाद यह निश्चित किया गया कि अब चंद्रमा के वातावरण और वहां पानी के अस्तित्व का पता लगाना होगा। लेकिन वहां मानव के लिए जाना आसान नहीं था जिसके लिए मानवरहित यान के तौर पर chandrayaan-2 की योजना बनाई गई और पूरी तैयारी के साथ इसे 7 सितंबर 2019 को लांच करने का फैसला किया

1:30 से 2:30 के बीच इस यान को लैंड कराने का फैसला किया गया। इस यान को लेकर इसरो समेत देश वासियों की काफी उम्मीदें टिकी हुई थी क्योंकि इसके माध्यम से भूकंप, विज्ञान, खनिज का पता लगाने, सतह की रासायनिक संरचना मिट्टी की भौतिक विशेषताओं कि जांच करनी थी।

हालांकि शत प्रतिशत यह मिशन कामयाब तो नहीं रहा क्योंकि लैंड करने के पश्चात लैंडिंग से लगभग 2 किलोमीटर ही लैंडर अपने रास्ते से भटक गया जिस वजह से अंतरिक्ष यान का इसरो से संपर्क टूट गया

बता दें अगर यह लैंडर successfully लैंड हो जाता तो यह चंद्रमा की विशेषताओं की जानकारियां रोवर को भेजता और इससे चांद के बारे में विस्तार से जानने में आसानी होती। लेकिन फिर भी इस मिशन के पूरी तरह सफल न होने के बावजूद भी देशवासी इसलिए खुश हैं। क्योंकि पहली बार चंद्रमा के ऐसे धरातल पर पहुंचने का प्रयास किया गया जहां पर अब तक कोई देश नहीं कर पाए।

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