Jain Slogans In Hindi [99+ जैन धर्म पर स्लोगन]


Jain Slogan In Hindi [99+ जैन धर्म पर स्लोगन] दुनिया भर में अलग-अलग मजहब और संप्रदाय हैं और उनके मानने वालों की संख्या भी कम या ज्यादा है। अगर हम हमारे भारत देश की बात करें तो हमारे देश में सबसे अधिक हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हैं, क्योंकि भारत देश को हिंदू धर्म का उद्गम स्थान कहा जाता है। 

खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है.

आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है, न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है.

हिंदू धर्म के बाद हमारे भारत देश में सबसे अधिक इस्लाम रिलिजन को मानने वाले मुसलमान लोगों की संख्या है। इसके बाद क्रमशः सिक्ख, बौद्ध, जैन और इसाई लोग आते हैं। इस आर्टिकल में आप जानेंगे जैन धर्म के बारे में। तो चलिए Jain Slogans In Hindi [जैन धर्म पर स्लोगन] के बारे में जानते है। 

Jain Slogans In Hindi – जैन धर्म पर स्लोगनJain Slogans In Hindi [99+ जैन धर्म पर स्लोगन]

जब अशोक राजा का राज था, तब जो अभिलेख थे, उनके द्वारा यह जानकारी प्राप्त  है की उस समय जैन धर्म का प्रचार मगध में हुआ करता था और उस समय जो जैन मुनि मठ में रहते थे, उनके बीच मतभेद होना शुरू हो गया कि चित्रकारों की मूर्तियां नग्न होनी चाहिए या फिर उन्हें कपड़े पहना कर रखना चाहिए। 

इसके अलावा जैन मुनियों के बीच इस बात पर भी वाद विवाद हो गया कि जो जैन मुनि जैन धर्म के हैं उन्हें कपड़े पहनना चाहिए या फिर उन्हें नंगे रहना चाहिए। ऐसा होते होते यह विवाद आगे चलकर बहुत ही ज्यादा बढ़ गया।

इसके बाद जो मुनि जैन धर्म को मानते थे, उनके बीच दो धड़ बट गए,जिनमें पहले वाले को स्वेतांबर और दूसरे वाले को दिगंबर कहा गया। Jain Slogans In Hindi पर हमने जो सभी Slogans लिखा है, वह स्लोगन है – 

किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असल रूप को ना पहचानना है, और यह केवल आत्म ज्ञान प्राप्त कर के ठीक की जा सकती है.

शांति और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है 

प्रत्येक जीव स्वतंत्र है. कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता।

भगवान् का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है. हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है।

प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है. आनंद बाहर से नहीं आता।

हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो. घृणा से विनाश होता है।

सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है।

सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं, और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं।

अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।

एक व्यक्ति जलते हुए जंगल के मध्य में एक ऊँचे वृक्ष पर बैठा है. वह सभी जीवित प्राणियों को मरते हुए देखता है. लेकिन वह यह नहीं समझता की जल्द ही उसका भी यही हस्र होने वाला है. वह आदमी मूर्ख है।

स्वयं से लड़ो , बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना ? वह जो स्वयम पर विजय कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी.

आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है. असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं , वो शत्रु हैं क्रोध , घमंड , लालच, आसक्ति और नफरत।

खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है.

आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है , न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है.

सभी अज्ञानी व्यक्ति पीड़ाएं पैदा करते हैं। भ्रमित होने के बाद, वे इस अनन्त दुनिया में दुःखों का उत्पादन और पुनरुत्थान करते हैं।

एक जीवित शरीर केवल अंगों और मांस का एकीकरण नहीं है, बल्कि यह आत्मा का निवास है जो संभावित रूप से परिपूर्ण धारणा (अनंत-दर्शन), संपूर्ण ज्ञान (अनंत-ज्ञान), परिपूर्ण शक्ति (अनंत-वीर्य) और परिपूर्ण आनंद (अनंत-सुख) है।

जिस प्रकार धागे से बंधी (ससुत्र) सुई खो जाने से सुरक्षित है, उसी प्रकार स्व-अध्ययन (ससुत्र) में लगा व्यक्ति खो नहीं सकता है।

केवल वही विज्ञान महान और सभी विज्ञानों में श्रेष्ठ है, जिसका अध्यन मनुष्य को सभी प्रकार के दुखों से मुक्त कर देता है.

वो जो सत्य जानने में मदद कर सके, चंचल मन को नियंत्रित कर सके, और आत्मा को शुद्ध कर सके उसे ज्ञान कहते हैं.

अज्ञानी कर्म का प्रभाव ख़त्म करने के लिए लाखों जन्म लेता है जबकि आध्यात्मिक ज्ञान रखने और अनुशासन में रहने वाला व्यक्ति एक क्षण में उसे ख़त्म कर देता है.

जो रातें चली गयी हैं वे फिर कभी नहीं आएँगी. वे अधर्मी लोगों द्वारा बर्बाद कर दी गयी हैं.

जो लोग जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य से अनजान हैं वे व्रत रखने और धार्मिक आचरण के नियम मानने और ब्रह्मचर्य और ताप का पालन करने के बावजूद निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे।

किसी जीवित प्राणी को मारे नहीं. उन पर शाशन करने का प्रयास नहीं करें.

जिस प्रकार आप दुःख पसंद नहीं करते उसी तरह और लोग भी इसे पसंद नहीं करते. ये जानकर, आपको उनके साथ वो नहीं करना चाहिए जो आप उन्हें आपके साथ नहीं करने देना चाहते.

केवल वह व्यक्ति जो भय को पार कर चुका है, समता को अनुभव कर सकता है।

मुझे अनुराग और द्वेष, अभिमान और विनय, जिज्ञासा, डर, दु: ख, भोग और घृणा के बंधन का त्याग करने दें (समता को प्राप्त करने के लिए).

जैन के तीर्थ

णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं।

णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं॥

ऊपर दिए गए वाक्यों का हिंदी में यह  अर्थ होता है कि: अरिहंतो ,सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सभी साधुओ को नमस्कार।

ऊपर जो लाइन लिखी है उसका मतलब होता है जीन शब्द से जैन शब्द बना हुआ है। इसका मतलब होता है जीतने वाला, जिसने खुद को जीत लिया है उसे जितेंद्रीय कहा जाता है।

तिरसठ शलाका पुरुष

  • 24 तीर्थंकर
  • 12 चक्रवर्ती
  • 9 बलभद्र
  • नो वासुदेव
  • नो प्रति वासुदेव

ऊपर जितने भी नाम दिए गए हैं उन सभी को मिलाकर टोटल 63 महान पुरुष जैन धर्म में हुए हैं। इन सभी पुरुषों का जैन धर्म को दुनिया में फैलाने में काफी अच्छा योगदान रहा है। इसीलिए जैन धर्म में इन्हें काफी इज्जत और मान सम्मान प्राप्त है।

24 तीर्थ कर

  • ऋषभ
  • अभिनंदन
  • अजीत
  • संभव
  • धर्म
  • पद्मप्रभ
  • सुपार्श्व, 
  • चंद्रप्रभ, 
  • पुष्पदंत, 
  • शीतल, 
  • श्रेयांश, 
  • वासुपूज्य, 
  • विमल, 
  • अनंत, 
  • शांति,
  • कुन्थु, 
  • अरह, 
  • मल्लि, 
  • मुनिव्रत, 
  • नमि, 
  • नेमि,
  • पार्श्वनाथ
  • महावीर
  • सुमती

श्वेतांबर क्या है?

जो मुनि जैन धर्म में श्वेतांबर वाले दल में होते हैं,वह सफेद कपड़े पहनते हैं और सफेद कपड़े पहनने वाले जैन मुनियों को श्वेतांबर कहा जाता है।

दिगंबर क्या है? 

जो मुनि जैन धर्म में दिगंबर वाले दल में होते हैं वह कपड़े नहीं पहनते हैं यानी कि वह नंगे रहते हैं और वह नंगे होकर ही कहीं पर भी जाते हैं।

दिगंबर जैन मुनि का जो आश्रम होता है वहां पर कठोरता के साथ सभी नियमों का पालन किया जाता है। वही श्वेतांबर मुनि के जो आश्रम होते हैं वहां पर दिगंबर जैन मुनि के आश्रम की तुलना में नियम थोड़े उदार होते हैं।

दिगंबर दल की कितनी ब्रांच है?

दिगंबर दल की कितनी ब्रांच है, जो इस प्रकार है।

  • मंदिर मार्गी
  • मूर्ति पूजक
  • तेरापंथी

श्वेतांबर दल की कितनी ब्रांच है?

श्वेतांबर दल की टोटल 2 ब्रांच हैं, जो इस प्रकार हैं – 

  • मंदिर मार्गी
  • स्थानकवासी

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, तकरीबन 300 साल पहले एक नई ब्रांच श्वेतांबर दल में उत्पन्न हुई जिसे स्थानकवासी कहा गया। यह लोग मूर्ति की पूजा नहीं करते हैं। जैन धर्म की इसके अलावा भी कई उप शाखाएं हैं, जो इस प्रकार हैं –

  • तेरहपंथी
  • बीसपंथी
  • तारण पंथी
  • यापनीय

जैन धर्म ग्रंथ

जिस प्रकार हिंदू धर्म में भगवत गीता में भगवान के उपदेश हैं और इस्लाम में कुरान में अल्लाह तथा सिख मजहब में गुरु वाणी में सिख धर्म की महत्वपूर्ण बातें हैं,उसी प्रकार जैन धर्म ग्रंथ में भी महावीर स्वामी ने जो उपदेश दिए थे, वह उपदेश अंकित है।

जैन धर्म ग्रंथ जैन मजहब का पवित्र धर्म ग्रंथ माना जाता है। इसमें जैन धर्म ग्रंथ में जितने भी तीर्थ कार हुए हैं, सभी के अनमोल वचन शामिल हैं। जैन धर्म ग्रंथ को टोटल चार प्रकार में बांटा गया है जो इस प्रकार है।

  • करनानुयोग
  • प्रथमनुयोग
  • चरनानूयोग
  • द्रव्यानुयोग

महावीर स्वामी

महावीर स्वामी का महत्व जैन धर्म के लोगों की निगाह में बहुत ही महत्वपूर्ण है। महावीर स्वामी का जन्म इस वी सदी 598 में 27 मार्च को वैशाली के कुंडलपुर के एक क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ के खानदान में हुआ था‌। 

त्रिसला लिच्छवी महावीर स्वामी जी की माता का नाम था जो कि राजा चैटकी की पुत्री थी। महावीर स्वामी ने जो उपदेश दिए थे वह जैन धर्म ग्रंथ के विभिन्न पन्नों पर प्रिंटेड है।

जैन मजहब की प्रमुख शिक्षा

जिस प्रकार हर धर्म ग्रंथ में मानव कल्याण के लिए बहुत सारी बातें बताई गई हैं, उसी प्रकार जैन मजहब के धर्म ग्रंथों में भी बहुत सारी बातें मानव कल्याण के लिए बताई गई है, जो इस प्रकार है।

  • जैन धर्म की प्रमुख शिक्षा है कि व्यक्ति को कभी भी किसी भी प्राणी को दुख नहीं पहुंचाना चाहिए,ना ही उसे घायल करने की कोशिश करनी चाहिए।
  • जैन धर्म के अनुसार व्यक्ति को हमेशा सच का साथ देना चाहिए और उसे हमेशा सत्य बोलना चाहिए,उसे किसी भी परिस्थिति में झूठ नहीं बोलना चाहिए।
  • जैन धर्म के अनुसार व्यक्ति को कभी भी चोरी नहीं करनी चाहिए,चोरी करने वाला व्यक्ति पाप का भागी होता है।
  • जैन धर्म के अनुसार व्यक्ति को हमेशा त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए,अगर कारण उचित हो तो।
  • जैन धर्म ग्रंथ के अनुसार जैन मुनि को हमेशा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और उसे सदाचारी जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए।

उम्मीद है की आपको जैन धर्म पर स्लोगन | Jain Slogans In Hindi से जुड़ी सभी जानकारी मिल चुकी होगी। 

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