दोस्तों अगर आप स्वामी विवेकानंद पर भाषण तलाश रहे हो तो आजके इस पोस्ट में हम Speech on Swami Vivekananda in hindi and स्वामी विवेकानंद पर भाषण – long and short Swami Vivekananda Speech In Hindi share करिंगे।
भारत की इस पावन धरती में अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है और उन्हीं महापुरुषों में से एक हैं स्वामी विवेकानंद जिन्होंने अपनी मातृभूमि के उत्थान में अहम भूमिका निभाई।
अपने महान कर्म एवं विचारों से स्वामी विवेकानंद ने जहां कहीं गए, वहीं लोगों के दिलों में विशेष स्थान बनाया। उनके विचारों को याद करके आज भी लोग उन्हें अपना आदर्श मानते हैं और उनके बताए गए पथ पर चलकर अपना भविष्य निर्माण करते हैं। उन्हें आज भी एक महान शख्सियत के तौर पर पूरा विश्व जानता है। आज हम Speech on Swami Vivekanand के इस लेख के माध्यम से आप तक उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां साझा कर रहे हैं।
स्वामी विवेकानंद जी युवाओं के प्रेरणा स्रोत भी कहीं जाते हैं। जिन्होंने देश के युवाओं को जीवन में कुछ बेहतर करने और अपनी मातृभूमि की सेवा करने हेतु प्रेरित किया। इसलिए आज उनके जन्मदिवस को “राष्ट्रीय युवा दिवस” के तौर पर भी मनाया जाता है।
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स्वामी विवेकानंद पर भाषण – Swami Vivekananda Speech In Hindi
भाषण 1 (Long Speech On Swami Vivekananda In Hindi)
बेहद कम आयु में वेद और दर्शन शास्त्र का अध्ययन करने वाले महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद का जन्म भारत के कोलकाता राज्य में 12 जनवरी 1863 हुआ था।
बाल्यावस्था में उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, मान्यता है उनका पैदाइशी नाम वीरेश्वर था। धार्मिक विचारों वाली उनकी मां एक ग्रहणी थी जबकि पिता पेशे से कोलकाता के हाई कोर्ट में लॉयर थे। पिता चाहते थे कि मेरा पुत्र पढ़ लिख कर एक जाना माना पेशेवर व्यक्ति बने! परंतु दूसरी तरफ मां के समान नरेंद्र की रूचि पेशेवर बनने के बजाय आध्यात्म की ओर अधिक थी।
ईश्वर के बारे में जानने में उनके अंदर बचपन से ही प्रबल रुचि थी। घर में उनके नियमित पूजा पाठ होता था। और धर्म को करीब से समझने के लिए उनके मन में अक्सर ऐसे प्रश्न आते थे जिनका जवाब अपने माता-पिता या गुरु जी से पूछते तो कई बार उनके भी सिर चकरा जाता।
नटखट स्वभाव के विवेकानंद बचपन में खूब खेलना कूदना मौज मस्ती किया करते थे! पढ़ाई में उनका मन कम ही लगता था। लेकिन तीव्र बुद्धि होने की वजह से जो भी पाठ नरेंद्र स्कूल में याद करते, तुरंत उनके दिमाग में छप जाता। सत्य को जानने की जिज्ञासा बचपन से ही विवेकानंद में थी। उम्र बढ़ने के साथ स्वामी विवेकानंद का मोह संसार से भंग होने लगा मात्र 25 वर्ष की आयु में वे घर बार छोड़ सन्यासी का जीवन जीने लगे।
1881 में स्वामी विवेकानंद की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई, उनके विचारों एवं शिक्षा से प्रेरित होकर स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु मान लिया।
पहली बार स्वामी विवेकानंद की अपने गुरु से कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में जब उनसे भेंट हुई तो उन्होंने अपना पहला प्रश्न अपने गुरु से वही पूछा जो वे औरों से पूछा करते थे! उन्होंने कहा कि आपने कभी भगवान को देखा है? उनके इस प्रश्न के जवाब में परमहंस ने कहा कि हां मैं भगवान को देखता हूं और मैं उन्हें उसी तरह देख पाता हूं!
जिस तरह मैं तुम्हें अभी देख रहा हूं बस सिर्फ फर्क इतना है कि मैं उन्हें तुमसे अधिक गहराई में महसूस कर पाता हूं।
उनके विचारों से प्रभावित होकर स्वामी विवेकानंद ने इस कदर भक्ति में लीन हो गए कि उन्होंने अपना पूरा जीवन अपने गुरु के चरणों में समर्पित कर दिया। पिता की मृत्यु के बाद घर की जिम्मेदारी का बोझ उनके कंधों पर आ चुका था। लेकिन गृहस्थ मोह और सांसारिक दुनिया से विलग अपने परिवार तथा खुद के जीवन निर्वाह की फिक्र किए बगैर वे गुरु भक्ति में लीन हो गए।
गुरु के प्रति उनकी निष्ठा का एक वाकया यह था कि एक बार उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस उम्र की उस अवस्था में आ चुके थे, जहां उनका शरीर अत्यंत रुग्ण हो चुका था तो एक बार गुरुदेव की सेवा में घृणा के भाव से नाक भौह सिकौड़ी, जिसे देखकर स्वामी विवेकानंद को अत्यंत क्रोध आ गया।
और उसी क्षण गुरुदेव ने बिस्तर के पास रखी रक्त, कफ इत्यादि से भरी रक्तदानी को उठाया और पी गए। और इस प्रकार गुरु के प्रति उनकी अनन्य भक्ति ने दर्शाया कि वे अपने जीवन में अपने गुरु का किस कदर आदर करते थे। इसलिए इस महापुरुष को उसकी गुरु भक्ति, गुरु सेवा के लिए आज भी याद किया जाता है।
और गुरु भक्ति के ही पथ पर चलकर 1 मई 1897 को स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसका प्रमुख उद्देश्य उन साधू सन्यासियों को एकजुट करना था जो रामकृष्ण परमहंस के विचारों एवं उनकी द्वारा दी गई शिक्षाओं पर असीम आस्था रखते थे।
साथ ही यह मठ रामकृष्ण परमहंस के विचारों को जनसाधारण तक पहुंचा कर दुखी एवं पीड़ित व्यक्ति की सेवा कर मानव कल्याण करने के लिए भी कार्यबद्ध है। आज भी रामकृष्ण मिशन कार्य कर रहा है। 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सभा का आयोजन किया गया जो लगभग 13 दिनों तक चला। दक्षिण भारत में स्वामी विवेकानंद जी के शिष्यों ने इस अवसर पर अपने गुरु से कहा कि वह भी अमेरिका जाकर हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में भाषण दे!
अपने अनुयायियों के इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए स्वामी विवेकानंद शिकागो पहुंचे और वहां इस महान शख्सियत के विचारों से प्रभावित Harvard University के प्रोफेसर राइट ने धर्म परिषद के प्रतिनिधि के रूप में उनका स्वागत & सम्मान किया। खास बात यह थी कि इस धर्म सभा में विश्व के अनेक देशों से विभिन्न धर्मों जैन, बौद्ध, मुस्लिम इत्यादि धर्मों के धर्मगुरु उपस्थित थे। परंतु स्वामी विवेकानंद एकमात्र हिंदू धर्म के प्रतिनिधि के तौर पर आए थे।
लेकिन जैसे ही स्वामी विवेकानंद के भाषण की बारी आई तो कोलंबस के हॉल में जब स्वामी जी ने सनातन धर्म की महानता एवं इसकी प्राचीनता पर व्याख्यान दिया। तो वहां उपस्थित सभी श्रोता उनके विचारों उनकी वाणी से प्रसन्न हुए और पूरे हॉल में जोरदार तालियों से उनका भाषण समाप्त हुआ।
इस तरह विश्व को इस महापुरुष ममबे हिंदू दर्शन के तत्व का आभास कराया इसलिए स्वामी विवेकानंद को भारतीय आध्यात्मिकता के स्तर को शीर्ष पहुंचाने वाला एक अद्भुत सन्यासी भी कहते हैं। मैं इन्हीं अंतिम शब्दों के साथ स्वामी विवेकानंद के इस भाषण को यहां विराम देना चाहूंगा धन्यवाद ।।
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भाषण 2 (Medium Speech On Swami Vivekananda In Hindi)
मानव जाति के उत्थान तथा हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार हेतु स्वामी विवेकानंद का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। यहां इस मौके पर मैं आपके साथ स्वामी विवेकानंद पर भाषण के माध्यम से इस महान शख्सियत के जीवन से जुड़ी कुछ उपयोगी जानकारी आपके साथ साझा कर रहा हूं।
12 जनवरी 1863 को भारत के कोलकाता राज्य के दत्ता परिवार में स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ। उनके पिता एक वकील थे जबकि माता धार्मिक प्रवृत्ति की गृहिणी थी। बचपन से नरेंद्र का मन खेलकूद एवं पढ़ाई में होने के साथ-साथ वे धर्म को जानने में गहरी दिलचस्पी रखते थे।
मोह माया से दूर स्वामी विवेकानंद ने मात्र 25 वर्ष की आयु में घर बार छोड़कर एक सन्यासी का जीवन व्यतीत किया और ज्ञान की खोज में निकल पड़े। उनके गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था जिनसे उनकी पहली बार 1881 में उनकी भेंट हुई! गुरु के संपर्क में आने के पश्चात उनके द्वारा दी गई शिक्षा से प्रभावित होकर स्वामी विवेकानंद ने उन्हें अपना परम गुरु मान लिया।
गुरु के आश्रय में रहने की वजह से स्वामी विवेकानंद को मानव जीवन एवं धर्म से जुड़ा अद्भुतज्ञान प्राप्त हुआ। और इसी ज्ञान की बदौलत वे एक अच्छे वक्ता बने और धर्म के इस ज्ञान को उन्होंने न सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व तक पहुंचाया। उम्र की अंतिम अवस्था में जब उनके गुरु का शरीर जब साथ छोड़ रहा था। तो इस अवस्था में उन्होंने गुरु भक्ति का अनूठा उदाहरण पेश कर अपने गुरु की तन मन धन से सेवा की।
1890 तक स्वामी विवेकानंद एक अज्ञात भिक्षु के तौर पर अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। वे साधू सन्यासियों तथा अपने अनुयायियों को ज्ञान देकर उनको अध्यात्म को करीब से समझने में मदद कर रहे थे। लेकिन 1893 में जब अनुयायियों के अनुरोध पर वे हिंदू धर्म का प्रचार प्रसार करने हेतु शिकागो में आयोजित धर्मसभा में गए, तो वहां उन्हें खूब ख्याति प्राप्त हुई।
स्वामी विवेकानंद वहां पर हिंदू धर्म के प्रतिनिधि के तौर पर गए थे। और अध्यात्म पर अपने विचारों को पश्चिमी संस्कृति के लोगों के समक्ष रखकर उन्होंने वहां उपस्थित सभी लोगों& धर्मगुरु तथा अन्य हस्तियों को चकित कर दिया। और सभी ने उनके विचारों से मुग्ध होकर जोरदार तालियों के साथ उनका सम्मान किया
वहां उपस्थित जिस किसी ने भी स्वामी के भाषण को सुना वे सभी इस महान हस्ती की प्रतिभा एवं विचारों से इस कदर प्रसन्न हुए कि जब तक वे जीवित रहे ताउम्र वे इस महापुरुष को भूल ना सके।
उन्होंने अमेरिका में वेदांत और योग के ज्ञान का भी प्रचार प्रसार का कार्य किया। इसीलिए हमारी मातृभूमि स्वामी विवेकानंद को एक ऐसे महान सन्यासी संत के तौर पर देखती है। जिसने मानव जाति को सेवा का महत्व, हिंदू धर्म का प्रचार प्रसार कर दुनिया को सनातन धर्म की महानता से अवगत करवाने का प्रयास किया।
अंत में हम यही कहना चाहेंगे कि इस धरती पर कम ही ऐसे महापुरुष पैदा होते हैं, हमें ऐसे महापुरष से सीख लेकर उनके विचारों को अपने जीवन में लाना चाहिए।
भाषण 3 (Short Speech On Swami Vivekananda In Hindi)
सम्मानीय प्रधानाचार्य जी, सभी शिक्षक गणों एवं यहां उपस्थित सभी लोगों को मेरा नमस्कार आज मैं यहां इस विशेष मौके पर महान पुरुष स्वामी विवेकानंद के जीवन पर एक लघु भाषण आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।
स्वामी विवेकानंद एक ऐसी महान शख्सियत है, जिसने हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार हेतु अमेरिका में जाकर लोगों को आध्यात्मिक शिक्षा और एक दूसरे के प्रति सद्भावना को विकसित करने की सीख दी। उन्होंने वर्ष 1897 में रामकृष्ण मठ की स्थापना की। यह मठ उन सभी साधु-सन्यासियों तथा रामकृष्ण परमहंस के अनुयायियों के लिए है जो उनके विचारों को अपना आदर्श मानते हैं।
स्वामी विवेकानंद को एक महान आध्यात्मिक संत एवं वक्ता के तौर पर भी जाना जाता है। जिन्होंने वर्ष 1893 में हुए शिकागो की धर्म सभा में समस्त मानव जाति को हिंदू संस्कृति से परिचित कराया स्वामी विवेकानंद शिकागो एक हिंदू धर्म में प्रतिनिधि के तौर पर गए थे।
उन्होंने अपने भाषण में कहा कि मुझे गर्व है कि मैं उस देश का निवासी हूं जिसने सभी धर्मों की तथा किसी भी देश में सताए गए लोगों का अपने यहां प्रेम भाव से स्वागत किया है। संप्रदायिकता कट्टरतायें एवं हठधर्मिता काफी समय से इस पृथ्वी को जकड़े हुए है, जिसने इस प्रथ्वी में खून खराबा कर इसे रक्त से सना है। जिस वजह से न जाने कितने देश,सभ्यताओं का विनाश हुआ है।
लेकिन मुझे यह आशा है कि आज के इस सम्मेलन का शंखनाद मानव जाति में सभी तरह के दुर्व्यवहारों को खत्म करने का कार्य करेगा।
स्वामी जी के इस भाषण के खत्म होते ही कोलंबस के उस हॉल में तालियों की गूंज हर तरफ देखने को मिली। जिससे इस अज्ञात भिक्षु को पूरे विश्व में ख्याति मिली और लाखों में संख्या में उनके साथ ऐसे अनुयाई जुड़ गए जो उनके विचारों का अनुसरण करते थे।
पेश है स्वामी विवेकानंद द्वारा कहे गए कुछ अनमोल विचार
- विवेकानंद कहते हैं कि जब तक हम जी रहे हैं तब तक हमें सीखना ही होगा क्योंकि अनुभव ही इस दुनिया में सबसे बड़ा शिक्षक है।
- विवेकानंद छात्रों को कहते हैं कि पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता और एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान और ध्यान से ही इंद्रियों को संयमित रख एकाग्रता प्राप्त की जा सकती है।
- उठो जागो और जब तक न रुको जब तक कि आप अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर लेते।
- एक समय में सिर्फ एक ही कार्य करो और पूरी ताकत अपनी उस काम में झोंक दो।
- अगर आपको खुद पर भरोसा नहीं है तो आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
- लोग तुम्हारी भलाई करें चाहे बुराई, लक्ष्य तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या ना हो तुम्हारी मृत्यु आज हो या युग में तुम कभी भी अपने न्यायपथ से भ्रष्ट ना होना।
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